Sunday, August 28, 2011

बदरा बरस गए


बदरा बरस गए
 मीठी-मीठी मचा गुदगुदी
मन में सरस गए
बदरा बरस गए कजरारे
बदरा बरस गए

अभी-अभी तो
नभ गलियों में
इठलाते से आए थे
कभी घूमते
कभी झूमते
भँवरे से मँडराए थे
देख घटा की अलक श्यामली
अधरों से यूँ परस गए
बदरा बरस गए मतवारे
बदरा बरस गए

रीती नदिया
झुलसी बगिया
डाली-डाली प्यास जगी
जल-जल सुलगी
दूब हठीली
नेह झड़ी की आस लगी
भरी गगरिया लाए मेघा
झर-झर मनवा सरस गए
बदरा बरस गए कजरारे
बदरा बरस गए

सुन के तेरे
ढोल-नगाड़े
धरती द्वारे आन खड़ी
रोली-चंदन
मिश्री-आखत
धूप औ' बाती थाल धरी
रोम-रोम से रोए, साजन
बिन तेरे हम तरस गए
बदरा बरस गए लो कारे
बदरा बरस गए







शिल्पा सैनी 

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