Sunday, August 28, 2011

दोस्त तुम हो


तारे जैसे बहुत दूर
पर
साथ साथ हर रोज
दोस्त तुम हो
फूलों की
मनरची गंध से
तितली के
अभिनमित पंख से
हर दिन हफ्ता साल
मुदित मुस्काए
दोस्त तुम हो
सुबह की धूप
कि जैसे
समा न पाए अँजुरी में
पर
मन घर आँगन
सभी जगह बिखराए
दोस्त तुम हो
जीवन के
गहरे सागर की
 तलहटियों में पलने वाले
सपनों को दे दिशा
सत्य पर
मदिर मदिर तैराए
दोस्त तुम हो
लगी आस में
बुझी प्यास में
मन उदास में
तम उजास में
साँस बाँस में
पूरी तरह समाए
दोस्त तुम हो


शिल्पा सैनी 
20  जुलाई   २०११

No comments:

Post a Comment