दीप धरो | |
सखि ! दीप धरो ! काली-काली अब रात न हो, घनघोर तिमिर बरसात न हो, बुझते दीपों में --------------------हौले-हौले, सखि ! स्नेह भरो ! सखि ! दीप धरो ! दमके प्रिय-आनन हास लिए, आगत नवयुग की आस लिए, अरुणिम अधरों से --------------------हौले-हौले, सखि ! बात करो ! सखि ! दीप धरो ! बीते बिरहा के सजल बरस गूँजे मंगल नव गीत सरस घर आये प्रियतम, --------------------हौले-हौले सखि ! हीय हरो ! सखि ! दीप धरो ! |
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